विज्ञान सर्वत्र विजयते
- Medha Bajpai
- Aug 9, 2022
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Updated: Mar 6, 2023
आज से 50 -100 वर्ष पश्चात जब विज्ञान के इतिहास पर गौर किया जाएगा तो कोविड महामारी को अनेकों आयामों के लिए याद किया जाएगा। इस महामारी ने विश्व के वैज्ञानिकों की मानस चेतना को झकझोर दिया और एक मंच पर खड़े होकर पूरी ऊर्जा से विज्ञान के सकारात्मक पहलू की ओर फोकस करने पर विवश किया। विज्ञान अगर मानवता सौहार्दता तथा विश्व बंधुत्व के लिए काम नहीं करता तो वह त्याज्य हैं। और अगर उसकी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सुपर कंप्यूटर की मदद से चिकित्सा और स्वास्थ्य और मानव द्वारा अबूझ क्षेत्रों में काम किया जाता तो वह पूज्यनीय है। अन्यथा विज्ञान केवल सूचनाओं का भंडार ही है।
16 वीं शताब्दी जब पूरा विश्व अपने अस्तित्व के संरक्षण और प्रभुत्व के लिए संघर्षशील था, उस समय भी कुछ विज्ञान प्रेमी वैज्ञानिक और मानवता के रक्षक सतत अपने खोज में तल्लीन थे।वही प्रक्रिया अभी भी जारी है । यही जीवटता मानव मूल्यों को संभाले हुए है।इसका उदाहरण वो पहली वैक्सीन है
1796 में एडवर्ड जेनर ने सबसे पहली वैक्सीन की शुरुआत की थी, जो इंग्लैंड में उस समय व्यवसाय से चिकित्सक थे और स्मॉल पॉक्स के लिए वैक्सीन खोजी। प्रेम के अतिरिक्त विज्ञान ही है जो सरहदें सीमाएं भाषा धर्म के बंधन से परे है। आधुनिक वैज्ञानिक परंपरा ने देश और काल की सीमा से आगे जाकर अपनी व्यक्तिगत खोजों के साथ दूसरे वैज्ञानिक खोजों को भी आगे बढ़ाया है। विज्ञान का कोई भी क्षेत्र पूर्णतः स्वतंत्र या अकेला नहीं रह सकता और ना ही कोई इनका विरोध है

भौतिक विज्ञान हो या रसायन, जीव विज्ञान हो या चिकित्सा उपकरण, तकनीकी, स्पेस, सुरक्षा, मानव जीवन उपयोगी सुविधाएँ, यांत्रिकी, परिवहन, कृषि, पर्यावरण सभी क्षेत्र एक दूसरे पर निर्भर और जुड़े हुए हैं। इसलिए परस्पर विरोधी विचार, व्यवहार, और संस्कार वाले व्यक्ति और देश भी विज्ञान की आराधना में एक साथ खड़े दिखाई देते हैं।इसका सबसे अच्छा उदाहरण कोरोनावायरस के विरोध में वैक्सीन निर्माण में सभी देशों के वैज्ञानिकों का सहयोग और समर्पण है
वरिष्ठ वैज्ञानिक जयंत विष्णु नार्लीकर के अनुसार भारत में विज्ञान की उत्पत्ति की राह पश्चिम की राह से अलग थी और अलग अलग विचारधाराएं भी है। लेकिन एक बात जो सार्वजनिक रूप से सत्य है कि वैज्ञानिक मत तर्क और ज्ञान सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य है।
आज आइंस्टीन के साथ ही सत्येंद्र नाथ बोस का नाम भी उसी शिद्दत से लिया जाता है और बोस- आइंस्टीन, सांख्यिकी को सम्मानित किया जाता है। रमन प्रभाव सर सीवी रमन के साथ जोड़ा गया है। इसी प्रकार बोसॉन कणों का नाम भी एसएन बोस के नाम पर है।
भारत में विज्ञान का गौरव शाली अतीत रहा है।प्राचीन काल से भारत के साहित्य और ग्रंथ विज्ञान और गणित के योगदान को प्रदर्शित करते है,ऋग्वेद में 200 बार विमान का सन्दर्भ आता है, लेकिन व्यवस्थित लिखित साक्ष्य के अभाव और प्रचार की कमी के कारण विश्व तक ज्ञान नहीं पहुँच पाया। चरक,आर्य भट्ट,नागार्जुन, सुश्रुत जैसे कुछ मनीषियों का नाम आता है।लेकिन रोचक ये है की आधुनिक विज्ञान भी उसी प्राचीन परंपरा के आगे का विस्तार है।
विनाश के विरूद्ध विज्ञान का संकल्प एक उद्घोष बन जाए यही कामना के साथ
“विज्ञान सर्वत्र विजयते”
Medha Bajpai
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