विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास
- Medha Bajpai
- Sep 6, 2020
- 4 min read
वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है ? :-
वैज्ञानिक दृष्टिकोण केवल विज्ञान से ही संबंधित नहीं है इसके अलावा अन्य क्षेत्र जैसे वैश्विक घटनाएं, सामाजिक सरोकार, सांस्कृतिक मान्यताएं, नैतिक कर्तव्य और व्यक्तित्व निर्माण में भी इसका उपयोग होता है यहां तक कि मानव व्यवहार और कौशलों में भी इसका उपयोग करके अपेक्षित परिणाम लाए जा सकते हैं|
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तात्पर्य विज्ञान विषय से ही नहीं अपितु मानव की संपूर्ण जीवन शैली को तर्क एवं कसौटी युक्त बनाना और मस्तिष्क को प्रगतिशील करना है| जिससे छात्र किसी भी घटना को केवल इसलिए ना स्वीकार करें कि ऐसा बताया गया है बल्कि स्वयं अपने मापदंडो पर परख कर, प्रश्न कर, जिज्ञासा शांत कर अपने समाधान पर पहुंचे और एक समग्र युवा के रूप में विकसित हो |

“वैज्ञानिक दृष्टिकोण ऐसी मनोवृत्ति या सोच है जो किसी व्यक्ति के अंदर अन्वेषण और खोज परक प्रवृत्ति विकसित करती है तथा किसी भी कार्य व्यवहार घटना और परिणाम की पृष्ठभूमि में उपस्थित कार्य के कारण को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न करती है|यही जिज्ञासा संभावित विकल्प पर विचार करने की प्रेरणा देती हैं और सही निर्णय पर पहुँचती है|”
विज्ञान से अधिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि विज्ञान तो हमेशा से था और रहेगा लेकिन तर्क और प्रश्नों की कसौटी पर रख कर संतोष पूर्ण परिणाम प्राप्त करना ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण है|
जैसे अंतरिक्ष, ग्रहण, ग्रह, उपग्रह, धरती, रंग, प्रकाशीय घटनाएं ध्वनि, ऊर्जा जो हमेशा से हैं | उन्हें अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिभाषित कर सकते हैं,वैज्ञानिक दृष्टिकोण में हम विषय वस्तु, घटना को संगतता से सत्य तक जाने की विवेचना करना सीखते हैं|
“वैज्ञानिक दृष्टिकोण एक मनोवैज्ञानिक रवैया है जो रोजमर्रा का विज्ञान करते रहने से प्रभावित नहीं होता बल्कि इसके लिए अपने मूल्यों और नैतिकता के ढांचे में बदलाव की जरूरत होती है”
-डॉ नटराज पंचपकेसन
प्राचीन भारत की परंपरा में हमेशा से तर्क और विज्ञान को महत्व दिया जाता रहा है| तर्कशास्त्र जैसे ग्रंथ का होना और विद्वानों के बीच होने वाली शास्त्राथ जैसी अद्भुत प्रतियोगिताएं इस बात का प्रमाण रही है |
हमारे देश में संविधान निर्माताओं ने इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को मौलिक कर्तव्यों में शामिल किया कि भविष्य में वैज्ञानिक सूचना एवं ज्ञान वृद्धि में वैज्ञानिक दृष्टिकोण युक्त चेतना संपन्न समाज का निर्माण हो सके |
प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञान अर्जन की भावना का विकास करें|
भारतीय संविधान अनुच्छेद 51 क : मौलिक कर्तव्य
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसे सोचने का तरीका, कार्य करने का तरीका, और सत्य तक पहुंचने का तरीका बताया था.

छात्रों के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्यों आवश्यक है? :-
छात्र 360 डिग्री पर ज्ञान ग्रहण करता है राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ncf-2005 फिर शिक्षा नीति 2020 में यह स्वीकार किया गया कि ज्ञान का उत्पादन नहीं होता सूचनाओं का उत्पादन होता है और जिससे छात्र अपने ज्ञान का सृजन करता है जिसे ज्ञानरचनावाद कहा जाता है |छात्रों के पास जो सूचना उपलब्ध है उनको जोड़कर जूझ कर अपने ज्ञान का सृजन करते हैं और अवधारणा निर्मित करते हैं|
विज्ञान में कोई पूर्वाग्रह नहीं होता कोई भी परम्परा कोई भी आध्यात्म या सामाजिक धारणा को वैज्ञानिक तरीके से सिद्ध किया जा सकता है लेकिन विज्ञान और अध्यात्म को मिथक से बाहर लाना होगा.
· भारत समेत वैश्विक स्तर पर जो महामारी का प्रकोप है उसको समझने के लिए
· उसके साथ ही पड़ोसी देशों की बीच में जो कटुता है
· समाज में आपस में सामंजस्य की कमी
· पर्यावरण की चिंताजनक स्थिति
· धर्म के नाम पर परंपरा के नाम पर धर्म गुरुओं और समाज परिवार द्वारा जाने अनजाने दिए जाने वाले अवैज्ञानिक अंधविश्वास|
· स्वार्थ के कारण युवाओं को राजनीतिक नेताओं द्वारा गुमराह किया जाना
· मनोवैज्ञानिक समस्याओं के कारण भ्रमित होकर बाबा और ओझाओ के मकड़जाल में उलझना
· बिना तार्किक हुए धर्म और जाति के नाम पर उन्माद
· लिंग भेद
इन सबसे व्यक्तित्व का विकृत हो जाना या संतुलित नहीं रह पाना यह सब ऐसे कारण हैं जिसमें छात्र ही सुधार ला सकते है और इसके लिए छात्रों को स्वयं को वैज्ञानिक अवधारणाओं पर परखना आवश्यक होगा.
अनेक छद्म वैज्ञानिक सिद्धांत आ गये हैं जिससे छात्र और समाज भ्रमित है,फेंगशुई, हस्तरेखा टेलीपैथी, सम्मोहन के अनुसरण से बहुमूल्य समय और धन छात्र नष्ट कर रहे हैं. छात्रों को यह बात समझनी होगी और इन से बाहर आना होगा|चंदा मामा और सूरज चाचा के कल्पित संसार से बाहर आकर यथार्थ को समझना होगा बहुत से रीति रिवाज केवल परंपराओं के नाम पर हैं|मासिक धर्म के पूर्वाग्रह से मुक्त हो उसका वैज्ञानिक पक्ष समझना आवश्यक है
ग्रहण और उसका विज्ञान भी तब ही समझ पायेंगे जब वैज्ञानिक दृष्टि कोण होगा|
डायन, काला जादू, तंत्र मंत्र, चमत्कारी तावीज, बलि और भूत प्रेत जैसे प्रथाओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परखा जाना अत्यंत आवश्यक है. इसके लिए बालपन से ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकसित किया जाना अति आवश्यक है|
विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास कैसे किया जाए :-
बालक की अवधारणाओं का सर्वाधिक विकास बाल्यावस्था और किशोरावस्था में होता है और इसी समय के मन में अंकित छाप अवधारणा बन कर जीवन भर चलती हैं. बालक सबसे अधिक परिवार और शिक्षक के संपर्क में होता है अतः शिक्षक की और पालकों की जिम्मेदारी सबसे अधिक होती है |
शिक्षक होने के नाते हम को समाज में और पालकों से सतत संपर्क करके वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखना और व्यक्तिगत और सामाजिक घटनाओं की तर्कसंगत विवेचना करना और इसको समाज तक पहुंचाना|
शिक्षक होने के नाते जिज्ञासा, प्रश्न पूछने को लगातार प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि प्रश्न होने पर ही उत्तर के कई विकल्प आएंगे और सही सोच से सटीक निर्णय होंगे धर्म परंपरा अंधविश्वास में स्पष्ट अंतर करना सिखाना है. छात्रों को यह भी सिखाना होगा कि मंत्रों में ध्वनि का विज्ञान है लेकिन ग्रहण के पूर्वाग्रह आधार हीन है.
दुनिया भर के विज्ञान में वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमेशा रहा है लेकिन नैतिक शिक्षा, मनोविज्ञान, धर्म तथा राजनीति में सही निर्णय करने हेतु प्रत्येक नागरिक में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को शामिल किया जाना अत्यंत आवश्यक है तभी हम एक स्वस्थ सुदृढ़ और सही युवा शक्ति के साथ समृद्ध राष्ट्र का निर्माण कर पाएंगे|
-MEDHA BAJPAI
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