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विज्ञान शिक्षण और जीवन मूल्य : नई शिक्षा नीति के संदर्भ में

Writer's picture: Medha BajpaiMedha Bajpai

कोरोना महामारी के दौरान ऐसे कितने ही समाचार हैं जो हृदय विदारक हैंl नकली दवाइयां, इंजेक्शन का कारोबार, मेडिकल से जुड़ी अति आवश्यक वस्तुओं की कालाबाजारी, जीवन रक्षक प्राणवायु ऑक्सीजन की मारामारी पशुतुल्य संवेदनहीनता और ना जाने कितने हीl


ऐसे समाचार जो हमें अंदर से उद्वेलित करते हैं मंथन करने को भी विवश करते हैं, की कहीं ना कहीं इन सब के लिए हमारी शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा प्रणाली दोषी हैं l छात्रों में कोई नैतिक चरित्र ,सनातन जीवन मूल्य और राष्ट्रवादी विचारधारा विकसित नहीं कर पाए l यह प्रश्न वर्तमान में और भी प्रासंगिक है क्योंकि बाजार वाद ने जिस तरह से नई पीढ़ी को प्रभावित किया है और शिक्षा विशेष कर विज्ञान तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता सालाना पैकेज से निर्धारित होने लगी है तो यह और चुनौती पूर्ण हो जाता है की ऐसा क्या और कैसे हो की विज्ञान शिक्षा मूल्य परक बनेl




राष्ट्र को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा

श्री अतुल कोठारी राष्ट्रीय सचिव शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा दिया गया उद्देश्य राष्ट्रीय शिक्षानीति NEP- 2020 में स्पष्ट परिलक्षित हैl इसी आधार पर यदि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर विचार करें तो पाएंगे कि यह नीति उन आधारभूत सिद्धांतों और प्रेरक शक्तियों से युक्त है जो मनुष्य के मानवीय पक्ष को मजबूत कर के भविष्य के भारत का उज्जवल स्वरूप निर्धारण करेगीl प्रत्येक व्यक्ति में अच्छाई और बुराई दोनों विद्यमान है अच्छाइयों को जागृत कर प्रकट करने में सहयोग करना ही शिक्षा हैl और इस पर ही ध्यान देना है l

आज सबसे बड़ी चुनौती प्रत्येक शिक्षा शास्त्री, शिक्षाविद शिक्षकों और छात्रों के ऊपर यह है कि 10 से 12 वर्षों के विज्ञान शिक्षा और शिक्षण के बाद कोई छात्र कैसे अपनी संस्कृति, मूल्य, कोमल भावनाएं और सहृदयता जीवित रखे l

विज्ञान शिक्षण से मात्र मशीनी रोबोट या कंप्यूटर तैयार नहीं करने हैं lइस भूमंडलीय दौर में जब वैश्वीकरण और वसुधैव कुटुंबकम की बातें जोर-शोर से होती हैं तब एक समाज से कटने वाले बालक को तैयार नहीं कर के हमें ऐसे बालक तैयार करने हैं जो मूलभूत मानवीय गुणों को जीवित रख सकें और यही व्यवस्था के स्पष्ट संकेत राष्ट्रीय शिक्षा नीति में दिए गये हैंl

विज्ञान शिक्षण के समय शिक्षक मुख्यतः यह प्रयत्न करता है कि छात्रों में , रचनात्मकता, तटस्थता प्रश्न करने के साहस और सौंदर्य के प्रति संवेदनशीलता जैसी संज्ञानात्मक ,भावनात्मक और मानसिक जगत की क्षमताओं का विकास हो । विज्ञान का विद्यार्थी इस प्रकार से विकसित होता है कि वह वर्तमान मान्यताओं पूर्वाग्रहों और समाज में प्रचलित प्रथाओं के बारे में न केवल तर्क वितर्क कर सके बल्कि दूसरों को राह दिखाने वाला भी बने ।


महात्मा गांधी ने कहा था अगर भारत को आध्यात्मिक शून्य नहीं बनाना है तो यहां के युवाओं को धार्मिक शिक्षण उतना ही आवश्यक है जितना धर्मनिरपेक्ष शिक्षणl सभी धर्मों की मूल भावना एक होती है, धार्मिक शिक्षण के पाठ्यक्रम में अपने धर्म के सिद्धांतों के साथ-साथ दूसरों के धर्म के सिद्धांतों के अध्ययन को भी शामिल किया जाना चाहिए और उसे विज्ञान सम्मत करके बालकों तक पहुंचाना चाहिए l जिससे उनमें विश्व भर में विभिन्न महान धर्म के सिद्धांतों की आदर की भावना के साथ साथ उदार सहिष्णुता से समझने और उसके प्रति सम्मान रखने की आदत बने।


यह एक आम धारणा है कि विज्ञान की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों पर पढ़ाई का अतिरिक्त बोझ होता है,तथा विद्यार्थी निराश और संवेदन शून्य होते जा रहे हैंl और यही विज्ञान शिक्षक के लिए चुनौती है |इसलिए विज्ञान की विषय वस्तु और शिक्षण विधि का निर्धारण करते समय विज्ञान को अपनी प्रकृति के अनुसार स्त्री पुरुष समानता ,पर्यावरण संरक्षण, परिवार नियोजन को अपनाने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों और मूल्यों के लिए पर्याप्त योगदान करना चाहिए और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अंग बनना चाहिए विज्ञान शिक्षण में शिक्षार्थी द्वारा प्रश्न पूछने की प्रवृत्ति और सदियों से चली आ रही परम्परा तथा हमारी संस्कृति, रूढ़ियों और कर्मकांड से संबंधित व्यवस्थाओं की समीक्षा करने जैसे मूल्यों का पोषण होना चाहिएl रचनात्मकता और सौंदर्य बोध का विकास होना चाहिए, इससे हमारी युवा पीढ़ी अज्ञानता पूर्वाग्रह और अंधविश्वास की गुलामी से मुक्त होगी lविज्ञान की पढ़ाई को वैज्ञानिक प्रमाणों से सिद्ध ना किए जा सकने वाले परंपरागत रूप से लोकप्रिय विश्वासों के संबंधों में प्रश्न और प्रयोग करने को तैयार होना होगा l


राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बालकों के अन्तर्निहित गुणों के विकास के लिए मुख्यतः तीन स्तरों की शिक्षा की बात की गई है l

बच्चों के मस्तिष्क का अधिकांश भाग बचपन में विकसित हो जाता है इसलिए प्रारंभिक शिक्षा खेल गतिविधि और खोज पर आधारित की गई है क्योंकि बच्चे भी अपने को गतिविधियों के माध्यम से व्यक्त करते हैं इसी माध्यम से बच्चों में ईमानदारी, मानवीय संवेदनाएं, शिष्टाचार, नैतिकता, सहकारिता सहयोग और नैतिक विकास हो और यह सब गतिविधियां उनको अपनी मातृभाषा में प्राप्त हो इसका ध्यान भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में रखा गया है

“ स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था शिक्षा जानकारियों का ढेर नहीं है बल्कि मन की एकाग्रता प्राप्त करना शिक्षा है शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे चरित्र का विकास हो मानसिक बल बढ़े और बुद्धि का विकास होl

जैसे ही बालक प्राथमिक से विद्यालय स्तर पर आए उसे , सेवा सहिष्णुता, लैंगिक संवेदनशीलता पर्यावरण के प्रति सम्मान लोकतांत्रिक दृष्टिकोण और बंधुभाव जैसे गुण विकसित हो और इसके लिए पंचतंत्र, दंत कथाएं एवं प्रेरक जीवन प्रसंगों तथा कहानियों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए और जैसे ही छात्र विद्यालय से महाविद्यालय में प्रवेश करेगा उसको केवल रोजगार प्रदान न करके उसके बहुमुखी प्रतिभा, वैज्ञानिक स्वभाव, सेवा भावना और चरित्र के विकास पर विशेष ध्यान देने का प्रस्ताव नई शिक्षा नीति में है उच्चतर शिक्षा संस्थानों द्वारा क्रेडिट पाठयक्रम के साथ पर्यावरण और मूल्य आधारित शिक्षा को सम्मिलित किया है जिससे विद्यार्थियों में भौतिक विकास के साथ आत्मिक विकास भी हो सके भौतिक विकास बालक के अंदर, तर्क के साथ करुणा, विकास के साथ सहानुभूति, सफ़लता के साथ मानवीयता और सौहार्द विकसित कर सके

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