महामारी का युवाओं की मानसिक अवस्था पर प्रभाव :एक अध्ययन Medha Bajpai
- Medha Bajpai
- Mar 18, 2023
- 20 min read
महामारी का युवाओं की मानसिक अवस्था पर प्रभाव :एक अध्ययन
दहशत में बीता कोरोना काल
कोविड 19 की लहर भयानक झंझावातों और तांडव का दौर दिखाकर थोड़ी सी शान्त हुई है। अब तूफान के शांत होने के बाद होने वाले नुकसान का आकलन करना है। इन युवाओं के बारे में सोच रही हूँ। जो 18 से 30 आयु वर्ग के हैं, जिनमें छात्र है और नए रोजगार से जुड़े युवा हैं, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले शिक्षार्थी हैं, नए वैवाहिक जीवन में प्रवेश करने वाले युवक युवतिया भी शामिल हैं।शहरी, कस्बाई, ग्रामीण क्षेत्रों के सभी उच्च, मध्यम, निम्न आय समूह के युवा है युवा वर्ग के अनेक स्तर हैं।
वह युवा जिसका एक अलग वर्ग है, जो गांव से नगर और नगर से महानगरों में अपने सपने को साकार करने के लिए आया है। वह युवा जो 12-14 घन्टे काम करता है फिर अपने होस्टल, रूम,अपार्टमेंट में ready to cookया आॅन-लाइन फूड खाता है ,वीकेण्ड पर भरपूर मौज,मस्ती और पार्टी करता है, शॉपिंग करता है और आसपास की दुनिया से बेखबर पैकेज बढ़ाने की जद्दोजहद और विदेश जाने के ख्वाब देखकर सो जाता है।
वह युवा जो वेब सीरीज देख कर सोता है, मीम के भरोसे छद्म हंसी हँसता है , अपने डर और असुरक्षा को इमोजी से दोस्तों से शेयर करता है।अपनी बात कहने के लिए उसके पास शब्द नहीं है न ही किसी के पास वक्त है उसे सुनने को।रिश्तों में बंधन जैसा महसूस होता है उसे और अकेले में अब डरता है|
समाज, रिश्ते, परिवार इन सब से दूर नीम बेहोशी की हालत में वर्चुअल दुनिया में रहता है, कभी इससे बाहर आने का मन हुआ तो कोई NGO जॉइन करके गरीब बच्चों में किताबें, फल बाँट दिए फिर ढेरों फोटो खींचने के बाद ,उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करके लाइक का इंतजार करता है। या फिर अपने को बुद्धिजीवी दिखाने के लिए किसी तथाकथित बाबा या गुरु का फाॅलोअर बन जाता है।
और अचानक सब पाॅज हो जाता है एक छोटे से वायरस के कारण। ऑफिस ,नाइट क्लब, जिम,माॅल ,होटल,रेस्तरां सब कुछ बंद और ये युवा किंकर्तव्यविमूढ़ रह जाता है ,बिलकुल खाली। उसे तो इन सबके बिना रहना आता ही नहीं ।
ऐसी लाइफ,ऐसा जीवन, उसने कभी देखा ही नहीं । मेडिकल स्टोर कहाँ है उसकी बिल्डिंग के पास, दूध और किराना कहाँ मिलता है, पड़ोस में कौन रहता है उसे नहीं पता है।बिना ज़ोमैटो, स्वीगी के खाना कैसे खाया जाता है वह नही जानता। तने जोड़ी कपड़े, जूते, घड़ी, बैग, बेल्ट ,महंगे ब्राँण्ड के सामान, कार,या माॅल से शापिंग, विदेशों में छुट्टियों के प्लान सब जीरो हो गये।
यह संकट तो देर सवेर टल जायेगा और फिर जिन्दगी पटरी पर आने लगेगी (कम से कम बाहर से तो ऐसा ही लगेगा) कुछ अच्छी बुरी यादें और कुछ सबक दे जायेगा|
देश की जनसंख्या का। 28% लगभग 40,करोड़ आयु वर्ग युवा हैं। और महामारी की विभीषिका को मात देकर जूझकर बाहर आया है। कितना कुछ छीना है इस महामारी ने इनका स्वास्थ्य, रोजगार, सामाजिक जीवन, धर्म की परिभाषाएं और आस्थाएं और मानव संवेदनाएं और जीवन मूल्यों पर प्रश्नचिन्ह ही खड़े कर दिए।
कोरोना महामारी की शुरुआत चीन के वुहान शहर से हुई। और इसने बहुत तेजी से पूरे विश्व को अपने चपेट में ले लिया। कोरोना संकट दुनिया में तीसरे विश्वयुद्ध की तरह रहा। शरीर से प्रवेश करते हुए इस नोवल कोरोना वायरस ने मन, विचार, जीवन शैली, धन ,समाज और राष्ट्र की विदेश नीति तक को प्रभावित कर लिया। विश्व में लगभग 20.9 करोड़ लोग करोना से ग्रसित हो चुके हैं और 43.8 लाख लोगों की मृत्यु हो गई है। भारत में मृत्यु का आंकड़ा 4.33 लाख है और खतरा अभी टला नहीं है।
देश के युवा ने सरकारी तंत्र का ढुलमुल रवैया देखा। स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए त्वरित व सटीक योजनाओं को बनाने और पालन करवाने में संकल्प का अभाव देखा। अस्पताल में मरते बिलखते लोग, और सामाजिक रिश्तों को ध्वस्त होते दृश्य को इस युवा पीढ़ी ने पीड़ा के साथ महसूस किया है।
यह वह समय रहा जब इन्हीं युवाओं ने अपनी शक्ति, ऊर्जा और मानवीय मूल्यों का प्रदर्शन किया था बिना किसी लालच के, बिना अपने जीवन की परवाह के, बिना किसी आडम्बर के चाहे वह गरीब कामगार हो या सोशल मीडिया पर सक्रिय युवा अपनी जिम्मेदारी गंभीरता से निभाने की कोशिश की है।
ये विश्व की ऐसी त्रासदी रही की व्यक्ति के जीवन दर्शन को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। जीवन की प्राथमिकता नए सिरे से परिभाषित करने की आवश्यकता हुई है।
इस महामारी के कारण पूरी दुनिया में 73 प्रतिशत युवाओं की पढ़ाई बाधित हुई है। भारत के सन्दर्भ में यहां युवाओं के अनेक स्तर हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य तथा गुणवत्तापूर्ण जीवन स्तर की उपलब्धता अलग अलग है अतः उसका प्रभाव भी अलग अलग है। लड़कियों पर पढ़ाई छोड़ने का दबाव, आमदनी घटने की चुनौती ,अनिश्चितता, डर और निराशा के बीच नौकरी के अवसरों में देरी या समय निकल जाने की आशंका ने युवाओं को महामारी से ज्यादा तोड़कर रख दिया है। लंबे समय तक घर में रहना ,सामाजिक दूरी, तथा अभिभावकों से सामंजस्य के अभाव में उपजे तनाव ने उन्हें मानसिक रोगी बना दिया है।
इतिहास के इस कठिनतम काल महामारी काल से निकलने की जद्दोजहद में यह मनन करना अत्यंत आवश्यक है कि क्या देश का युवा जो स्वयं अपने उद्देश्यों और लक्ष्य से भटक कर दिग्भ्रमित है राष्ट्र के लिए, समाज के लिए और स्वयं अपने लिए दिशा निर्धारित करने के लिए कितना सक्षम है। उसने अपने आप को इस बीमारी के सामने कैसे सक्षम बनाया।उसे क्या चुनौतियां सामना करना पडी, और अभी भी क्या चुनौतियाँ है जिनके लिए तैयारी करना है ।
गौरवमय अतीत
भारत का प्राचीन इतिहास अलौकिक उद्यम, बहुविध प्रदर्शन, असीम उत्साह, साहित्य, दर्शन शास्त्र की विरासत की एक विशाल श्रृंखला रही है। प्रगति के उस महाअभियान के प्रत्येक चरण में युवा शक्ति ने भूख प्यास से गुजरकर , लोभ मोह से वीतराग होकर अपने अपराजेय बाहुबल और बुद्धि बल के सहारे विपरीत परिस्थितियों झंझावातों और प्रकृति के विरुद्ध संघर्ष करके एक ऐसा देश का निर्माण किया था जहाँ मानव में करुणा, उदारता, विश्व बंधुत्व, शुचिता और शांति का वातावरण था। प्राचीन, मध्यकाल में विज्ञान, खगोल विज्ञान, प्रणाली विज्ञान, गणित, शल्य चिकित्सा, मानव पर्यावरण अंतरसंबंध सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं का स्वर्णिम काल रहा है। लेकिन पिछले 1000 सालों का अगर हम अध्ययन करें। तो यह केवल अतीत की वस्तुएं हो गई है। और वर्तमान में अकर्मण्य होकर अतीत की विरासत पर केवल जुगाली करना सही नहीं है। युवाओं को यह विचार करना होगा की अतीत की विरासत अब कहाँ है? 2021 में जब क्वाण्टम कम्यूटर बन रहा था उस समय हमारे युवा क्या कर रहे थे। 2018 में जब मृत वैक्टीरिया में जीवन उत्पन्न किया जा रहा था तो समकालीन युवा कहाँ थे?
एक समय था जब पृथ्वी रोम का नाम लेते ही कांपती थी, परन्तु आज उसी रोम का कैपिटोलिन पर्वत खंडहरों का ढेर बना हुआ है। जहाँ पहले सीजर राज्य करते थे, वहीं आज मकड़ियां जाला बुनती हैl अतीत की बात और याद से विकास नहीं हुआ करते। अतीत की याद केवल इसलिए अवश्यक है की वह वर्तमान की नींव मजबूत करे।
संघर्षमय वर्तमान : महामारी से महाविनाश
मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने की चुनौती
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन आईएलओ ने महामारी बाद 18 से 29 वर्ष के शिक्षित और इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले युवा लोगों पर 112 देशों में सर्वेक्षण से यह निष्कर्ष निकला है। की महामारी के बाद 50% युवा चिंता और अवसाद के शिकार हैं।और 17% में यह स्थिती गंभीरतम है महामारी तालाबंदी, रोजगार के खत्म हो जाने और अनिश्चित भविष्य की चिंता मेल जोल का अभाव ने युवाओं को मानसिक बीमार बना दिया है और भविष्य में यह तनाव का विस्फोट व्यवहार में प्रकट होगा। इसका सबसे ज्यादा नुकसान युवा महिलाओं को हुआ है। यह समाज को असंतुलन और लैंगिक असमानता की ओर जा रहा है ।महामारी के दौरान महिलाओं को दोहरे कार्यभार घरेलू हिंसा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। यह शिक्षित, अर्धशिक्षित और अशिक्षित सभी वर्ग की महिलाओं के साथ स्थिती एकसमान है। एक अध्ययन कहता है कि महिलाएं 25 साल पुराने स्तर तक पिछड़ सकती है। रोजगार शिक्षा के मौके कम हो गए हैं। सितम्बर 20 में ही विश्व में 2 लाख पुरुषों के मुकाबले लगभग 9लाख महिलाओं ने स्वयं नौकरी छोड़ दी। और अब तक वापस नहीं आई है। इससे उनके सेहत मानसिक स्वास्थ्य,आर्थिक प्रगति और स्वतंत्रता पर असर पड़ा है। भारत में स्थिती और भयावह हो गई है। नौकरी की अनुपलब्धता शिक्षा में रुकावट, परीक्षा में लगातार देरी, लैंगिक भेदभाव ने युवाओं की मानसिक अवस्था को तहस नहस कर दिया है। युवा ऐसा महसूस करने लगे है की पूरी दुनिया का बोझ उन पर ही आ गया है और तनाव के कारण उनका मस्तिष्क फटा जा रहा है यदि परिस्थितियों पर नियंत्रण नहीं किया गया तो देश मे मानसिक बीमार युवाओं की संख्या मे अत्यधिक वृद्धि हो जाएगी |
अवसाद ग्रस्त युवा
भोपाल के प्रमुख शासकीय अस्पताल के मनोचिकित्सक की मुख्य समाचार पत्र में सितम्बर 2021 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के बाद लोग मानसिक रूप से ज्यादा परेशान हैं। युवा वर्ग सबसे अधिक अस्थिर और विचलित है। एक तरह से सामूहिक चेतना पर नैराश्य आ गया है। युवाओं में पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर पी टी एस डी की समस्या ज्यादा देखने को मिल रही है। PTSD एक ऐसी दुष्चिन्ता विकृति है जिसका कारण महाविपत्ति जैसे प्राकृतिक आपदा, युद्ध , विवाह विच्छेद, प्रियजनों की मृत्यु या कोई दुखद घटना होता है। ऐसी स्वाभाविक, अस्वाभाविक घटना के बाद व्यक्ति में सांवेगिक और मनोवैज्ञानिक समस्याएं उत्पन्न होती है।लेखक स्वयं मनोवैज्ञानिक सलाह कार है और युवाओं की मानसिक परिस्थितियों की साक्षी रही हैं।
मुझे अब भी पूरे 18 माह के वो दहशत वाले दिनों की याद आँखों के सामने है
1. कैसे रात 11.13 बजे एक मझोले शहर की युवती जिसके 7 साल शादी के हुए हैं और 2 प्यारे बच्चों की माँ है, कामकाजी भी है,उसका फोन आता है
कितना डर, चिंता और आक्रोश था उसकी आवाज़ में अचानक से उसे लगने लगा था की उसके पति के किसी अन्य युवती से विवाहेत्तर संबंध हैं, और ये भी लगने लगा था की उसके पति उसे बहुत प्रताड़ित करते हैं।उसकी शांति, नींद, सुकून, विश्वास सब खत्म हो रहा था।
बहुत शांति और सिलसिलेवार तरीके से अनेकों सत्र में बातचीत करने पर पता चला की काम का बोझ,lock down का बोझिल वातावरण, किसी संबंधी द्वारा आत्महत्या कर लिए जाने की दहशत और पति का काम के सिलसिले में लैपटॉप, और फोन पर ज्यादा वक्त बिताने को उस युवती ने इस तरह का रूप दे दिया था।वो इतनी हताश थी की किसी भी तरह अपने पति से पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगी थी क्योंकि वही सबसे करीब था और उसको लगता था की हर मुसीबत का कारण वही है।कोविड में खो जाने का डर इतना अंदर तक बैठ गया था कि लगता था की उसका पति अपनी प्रेमिका के साथ मिलकर इसका सब छीन लेंगे,बच्चे, पैसा, सामाजिक प्रतिष्ठा सब खो जाएगा।और उसको नींद आना बंद हो गई। अपने पति की जासूसी करके भी जब कुछ नहीं मिला था तो मेरे पास आई थी कि पति की चालाकियां वह नहीं पकड़ पा रही है
बहुत सत्र लगे ये समझाने में की दुनिया उतनी बुरी नहीं है जितना लोग उसके बारे में प्रचारित करते हैं।
2 21 वर्ष का वह युवक जो कभी मेरा छात्र था, मेधावी, ऊर्जावान और क्षमताओं से भरपूर। इंजीनियर बनना चाहता था, स्कूल के दिनों में उसने अपनी दक्षता का प्रदर्शन कई बार किया था। 3 वर्ष बाद उसका जब फोन महामारी के दौरान आया तो बहुत टूटा हुआ सा लगा ,कह रहा था की मैडम अब जीवन मे कुछ नहीं बचा है बस आखिरी बार आपसे बात करना चाहता था अच्छा हुआ आपने फोन उठा लिया नहीं तो यही लगता की किसी के लिए मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ अब ।
ग्रामीण पृष्ठभूमि का छात्र जो निम्नआय स्तर से संबंधित था छात्रवृत्ति के भरोसे उसकी पढ़ाई चलती थी।
महामारी में पिता की अस्थायी नौकरी चली गई कॉलेज, ने फीस में कोई विशेष राहत नहीं दी।6 लोगों का परिवार अचानक भुखमरी के कगार पर आ गया और छात्र पढ़ाई छोडकर मजदूरी करने पर मजबूर हो गया ।उसके सपने, महत्वकांक्षा, उसकी गर्लफ्रेंड सब एक साथ छूट गए।
महामारी के डर से बचपन की सखी का विवाह उसके घर वालों ने कही और कर दिया।इतनी उदासी, एकाकी पन और अंधकार भविष्य ने उसे भरे संसार में अकेला कर दिया था, उसने पहली लाइन यही कही की मैं रोना चाहता हूँ
3 महानगर का संपन्न परिवार का वह युवा जिसका विदेश में उच्च शिक्षा के लिए चयन हो गया था इसलिए कॉलेज के अंतिम वर्ष में मिली जॉब को ठुकरा दिया था । महामारी ने उसकी सारी योजना पर पानी फ़ेर दिया।अब न नौकरी है ना कोई विदेश जाने के अवसर, कोरोना वायरस ने वैसे ही सोशल लाइफ खत्म कर दी और परिवार का अकेला लड़का जब दोस्तों के पास कहने को अपनी नौकरी और उसके अनेक अनुभव होते हैं इसके पास कहने को कुछ नहीं होता है जब मेरे पास ये युवा आया तो कहने लगा की कम से कम मुझे कोरोना ही हो जाता तो कुछ होता तो अपने बारे मे कहने को, उद्देश्यहीन खाली पन के साथ उसके अंदर जो भावनाओं का ज्वार उमड़ा है की सम्भालने में कई हफ्ते लगे
अपने नसीब को कोसते हुए उनसे अपनों से दूरी बनाना शुरू कर दिया था, कमरे में बंद होकर रहना शुरू कर दिया। माता पिता की कोई भी बात ताने जैसी लगने लगी और स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता खत्म हो रही थी। बहुत मुश्किल से समझा पाई की हाईजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत केवल किताब मे ही नहीं जीवन में भी होता है
कितने ही बच्चों, युवा, प्रौढ और बुजुर्ग इन समस्या से जूझ रहे हैं
*नींद ना आना या स्वप्न में उस घटना को बार बार याद करना ।
*लगातार तनाव और चिड़चिड़ापन पैनिक अटैक आना ।
*विषाद, उदासी का स्तर ऊंचा हो जाना और सामाजिक संपर्क से दूर होना।
*एकाग्रता का खत्म होना स्मृतिलोप जैसा आभास होना।
*डिप्रेशन ,आत्महत्या के लक्षण का प्रकट होना।
हर व्यक्ति अलग तरह का होता है। उसकी परिस्थितियां अलग होती है उसकी जैविकीय प्रकृति अलग होती है , स्मृति और मस्तिष्क में किसी घटना और व्यवहार, यातना को ग्रहण करने और प्रतिक्रिया करने की क्षमता अलग अलग होती है। लेकिन पूरे विश्व भर में एक बात समान है की युवा वर्ग को तिहरी समस्या से जूझना पड़ा है। स्वास्थ्य का नुकसान, वित्तीय मोर्चे पर असुरक्षा की भावना, और अपनों को खोने का गम या डर ने तनाव और अवसाद को बहुत बढ़ा दिया है। अपने बच्चे को खोना या अपने साथी से अलगाव उन्हें सबसे ज्यादा तोड़ता है। महामारी के प्रारंभ होते हुए दूसरी लहर खत्म होते तक 18 महीने का समय लगातार तनाव में रहते हुए बीता है। । भारत में युवा महिलाओं की स्थिती और खराब है और यह लंबे समय तक बनी रह सकती है। आम गूगल ट्रेंड्स रिपोर्ट में 2020-2021 की सर्च लिस्ट से पता चलता है की अवसाद और उससे जुड़ी जानकारी की खोज में अचानक से वृद्धि हो गई है। कोरोना वायरस के बाद पूरे विश्व में अवसाद के रोगियों के 12% ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। 30 वर्षों तक 300 अध्ययन पर यह परिणाम प्राप्त हुए की जीवन में तनावपूर्ण घटनाएं इम्युनिटी सिस्टम पर बुरा असर डालती है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में इस मेटा डाटा का विश्लेषण प्रकाशित हुआ है। मुश्किल का दौर है ऐसे समय में युवाओं को भावनात्मक स्थिर होना एक चुनौती है।अगर जल्दी स्तिथि को नियंत्रित नहीं किया गया तो एक पूरी पीढ़ी मानसिक बीमार होगी। कोविड 19 की परिस्थिति में युवाओं और किशोरों की चिंताएं और प्राथमिकताएँ बदल गई है। लेखक ने महामारी के पहले और बाद में युवाओं द्वारा मानसिक सत्र मे पूछे जाने वाले प्रश्नों के पैटर्न पर एक शोध पत्र तैयार किया है। प्रश्नों के पैटर्न पूरी तरह बदले हुए है। तनाव और चिंता की मात्रा बढ़ने से मनोवैज्ञानिक सलाह लेने वाले युवाओं की संख्या 500% तक बढ़ गई है। लगभग 79% युवाओं ने अपरिभाषित भय, अनिश्चित भविष्य का तनाव, मृत्यु भय और नींद न आने की शिकायत की है।


अवसाद से उपचार की ओर
पॉज़िटिव होना केवल ऊपरी खुशी नहीं है। यह एक पूरी सोच है, एक जीने का ढंग है और ऐटिट्यूड है की जीवन में आने वाली तकलीफों का सामना आप कैसे कर सकते हैं? इसी सोच के साथ मानसिक चिकित्सा उपचार पर बात की जाती है। मानसिक स्वास्थ्य गत लक्षण महीनों या सालों तक रह सकते हैं, इसलिए आपातकालीन उपाय पर विचार किया जाता है। इन आपातकालीन उपायों में गहरे व्यक्तिगत परामर्श से लेकर सामूहिक परिचर्चा की जाती है। इस तरह के आपातकालीन उपाय एक तरह के निवारण उपाय के रूप में होते हैं। विभिन्न प्रकार की एंटी एंग्जाइटी ड्रग और एंटी डिप्रेसेंट ड्रग्स का उपयोग करके मानसिक विकार लक्षण में काफी कमी देखी गई है। इसके अतिरिक्त तनाव, प्रबंधन, मानसिक स्थिरता संबंधी साहस उत्पन्न करना। वर्तमान परिस्थिति को स्वीकार करना और आत्महत्या जैसे लक्षणों से बाहर निकलना जैसे प्रशिक्षण भी प्रदान किए जाते हैं। इन कार्यशाला में निम्न क्रम पर कार्य किया जाता है।
हर चीज नकारात्मक नहीं होती।
एक एक बात पर फोकस करके उसका हल निकालें। यदि आर्थिक स्थिति ठीक करना है,या अपना स्वास्थ्य ठीक करना है। दिनचर्या नियमित करना है। तो पहले उसको ठीक करने की कोशिश करें बाद में दूसरी चीजों पर ध्यान लगाएं।
हमारे नियंत्रण में क्या है? और क्या नहीं है?
इसकी स्पष्ट पहचान करें। जो मेरे नियंत्रण में नहीं हैं उसके लिये मेरी ऊर्जा और समय क्यों खराब किया जाये ये सोच रखना चाहिए l
मेरे कार्य, मेरी भावनाओं का प्रबंधन, मेरे निर्णय, और मेरा व्यवहार, यह मेरे नियंत्रण में है। और यही मुझे ठीक करना है। दूसरों का व्यवहार, भूतकाल, अप्रत्याशित आपदा ,दूसरों की सोच, और दूसरों की पसंद पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। इसलिए हम उस पर न तो कोई टिप्पणी करें, न उसको अपनी सोच में हावी होने दें।
परिस्थितियों को स्वीकार करें।
उसके आधार पर जीवनशैली बदलें। जैसे अगर अभी हम कोरोना काल में चल रहे हैं, तो हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमको बहुत समय तक इन्हीं परिस्थितियों में रहना है।जब परिस्थिति स्वीकार कर लेते हैं तो रास्ते ढूंढने की दिशा में सोच बनती है l
हमको लगातार सोशल डिस्टेंस का पालन करना है। हमे भीड़ कई जगहों पर नहीं जाना है। और अपने सामूहिक उत्सव प्रियता को थोड़ा विराम देना होगा l work from home औरऑनलाइन पढ़ाई को भी स्वीकार करना होगा ।और यह भी की केवल शिकायत नहीं हल की ओर देखना है l शिकायत हमें नकारात्मक करतीं हैं और हल उम्मीद की किरण होते हैं l
.विचारों की जकड़न से मुक्त हो
अपना अवलोकन करें। बहुत ज्यादा जिम्मेदारी और नकारात्मकता के बोझ से दबे नहीं।स्वयं के मन का काम करने का समय निकालें। अगर आपको डांस करना अच्छा लगता है या भले बेसुरे हो पर गाना अच्छा लगता है तो करते रहिए बिना ये सोचे की कोई क्या सोचेगा l हंसिये, मुस्कुराए और अपना दिल हल्का करें। कम से कम किसी एक व्यक्ति की मदद जरूर करें। समाज से हमें जो मिला है उसको लौटाने की कोशिश करें । केवल पैसा ही नहीं , करुणा, प्रेम, समय या उदारता जो भी हमें मिला है उसे लौटाने की कोशिश करेl मायने ये रखता है कि आप जीवन की परेशानियों को देखकर सिर्फ हथियार न डाल दे। जीवन से हमेशा उम्मीद रखें।जीवन किसी लड़ाई में न रुकता है न समाप्त होता है। और ना ही थकता है
अपनी चेतनता रखें और कृतज्ञ रहें
परिस्थितियों के प्रति चेतन रहें, और जो प्राप्त है उसके लिए अनंत चेतना के प्रति कृतज्ञ रहेंl प्राप्त की सूची बनायेंगे तो पता चलेगा की आपके पास कितना कुछ है lयहाँ सूची में केवल भौतिकता ही ना रखें उसके साथ अपनी अभौतिक बातें जैसे अपनी बुद्धि, अपने मित्र, परिवार, अपनी आध्यात्मिक, भावनात्मक शक्ति, प्रकृति को भी शामिल करें। उसके लिए कृतज्ञ हो l
स्वयं के लिए नरमी बरते। स्वयं के प्रति निष्ठुर लोंगो के ऊपर नकारात्मकता हावी होती है। इसलिए हर गलती हर परेशानी के लिए खुद को जिम्मेदार ना माने ।
शिक्षा, रोजगार और आर्थिक मुद्दें की नई परिभाषा
सी एम आई ई (भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र) के आंकड़े के अनुसार कोरोना की दहशत और महामारी के बीच फरवरी 21 तक देश में 1.89 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरी खोई हैं। केवल अप्रैल महीने में 34 लाख लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।विदेश के नौकरी से मोहभंग और भौतिक संसाधनों की व्यर्थता ने युवाओं को गहरे तक प्रभावित किया है |
इस महामारी के दौरान पूरे विश्व भर में विभिन्न स्तरों में 73-90 प्रतिशत तक शिक्षा प्रभावित हुई है। कोरोना वायरस ने भारत में भारी तबाही मचाई है और सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी नकारात्मक की ओर चले गए हैं। इसका सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव 15 से 29 वर्ष वाले युवाओं ने झेला है।
देश की 90% श्रम शक्ति इनफॉर्मल सेक्टर से ही आती है। और पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था में उनका पसीना भी शामिल है। लेकिन भयंकर बेरोजगारी और शिक्षा के खलल के साथ साथ उन्हें असफल होती शिक्षा व्यवस्था की मार भी झेलनी पड़ रही है। यूनीसेफ की एक सर्वे के अनुसार दक्षिण एशियाई देशों में रोज़ करीब 1 लाख युवा जॉब के लिए आ रहे हैं, लेकिन उनमें से आधे में भी पर्याप्त योग्यता नहीं है। यही स्थिति भारती युवाओं की भी है। कुशल कामगारों की कमी में शिक्षा और कौशल विकास प्रशिक्षण की कमी बड़ी बाधा बन कर आई है। शिक्षा में बाधा पड़ने की एक बड़ी वजह ऑनलाइन शिक्षा के दौर में गजट और नेटवर्क की उपलब्धता में भारी असमानता हैं। प्रत्येक स्तर गांव, नगर, महानगर में प्राथमिक, माध्यमिक और स्नातक स्तर की शिक्षा का निर्धारण मापदंड डिजिटल संसाधनों पर निर्भर हो गया है। तो युवाओं का उत्साह कम हो गया है। जहाँ परिवार दाने दाने को मोहताज हो और जान बचाने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही हो। फिर शिक्षा के प्रभाव और फायदे की चिंता कौन करे ।
ग्रामीण युवा लड़के, लड़कियां पढ़ाई छोड़ने का मन बना चुके हैं। क्योंकि वह मध्यम वर्गीय परिवार जिन्होंने अपने परिवारजनों को खोया है। उनके पास आय का कोई साधन नहीं है। वह खराब स्वास्थ्य, निम्न जीवन स्तर,और जमीनी हकीकत , उदासीन और नकारात्मक सोच ने उन्हें शिक्षा से विमुख दिया है।
यूजीसी के प्रोफेसर आर सी कुल्हड़ की कमेटी ने हाल ही में रिपोर्ट दी है। उनके अनुसार भारत में वर्तमान डिजिटल ढांचे में अंतर होने के कारण ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा को अपनाने में संकट आया है। इस इससे आगे चलकर और असमानता तथा मानव पूंजी के विकास में कमी और रोजगार में कमी आएगी। व्यवसायिक शिक्षा में रोजगार की क्षेत्र की संभावनाओं को विस्तार करना होगा। केवल संगठित औद्योगिक क्षेत्र की जरूरतें पूरी करने के लिए संभावनाओं को सीमित नहीं किया जा सकता वरन समुदाय के लाभ के लिए संभावना पर विचार करना है। व्यावसायिक शिक्षा को संगठित क्षेत्र के दायरे से आगे ले जाना है तभी युवाओं के विकास की संभावनाओं के द्वार खुल पाएंगे।
सामाजिक परिदृश्य : बिखरती आस्थाएं
महामारी का असर भारतीय युवाओं की आकांक्षा और प्राथमिकताओं पर पड़ा है l युवा पैसे से ज्यादा रिश्तों और लंबी चलने वाली दोस्ती को अहमियत दे रहे हैं l बैंक बाजार डॉट कॉम के एस्पीरेशन इन्डेक्स-2021 के अनुसार 82%कामकाजी युवा महामारी प्रभावित हुए हैं और इससे उबरने में उन्हें 2 साल का समय लग सकता है युवा सेहत, बचत खाने पीने की आदतों पर भी पुनर्विचार कर रहे हैं।
चरमराते सामाजिक व्यवस्था के इस वातावरण में इस वायरस ने आग में घी का काम किया। वर्तमान में विश्व भर के युवा असमंजस में हैं।उन्हें यह नहीं समझ में आ रहा कि समाज की परिवार की सही परिभाषा क्या है? क्या वह जो अभी तक उनके बड़े सिखाते आए हैं लेकिन वक्त आने पर बिलकुल विपरीत और कुत्सित रूप महामारी के दौर में देखा है ये भी देखा गया है कि युवा वर्ग मानवीय मूल्यों पर खरा उतरा है, बजाय प्रौढ और बुजुर्ग पीढ़ी के। युवा वर्ग में दया, प्रेम, सहकारी त्याग जैसे बुनियादी जीवन मूल्यों को अपने व्यवहार में अपना लिया है।
कोरोनावायरस से अधिक खतरनाक उसका भय है। जिसने मानवीय मानवीय मूल्यों संबंधों। रिश्तों को तार तार कर लिया कर दिया। । और कोरोना ने सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक जीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया है, संदेह की दीवार और डर ने पारिवारिक व्यवस्था को छिन्न भिन्न कर दिया है। जब बेटा अपने वृद्ध माता पिता का को अंतिम संस्कार पर ले जाने को तैयार नहीं है। ऐसा भी समय लोगों ने देखा। लेकिन इसके साथ ही। यह भी देखा इस अंधेरे का उजला पक्ष यह रहा कि युवा अपने परिवार और मित्रों के बीच सुखद और गुणवत्तापूर्ण समय बिता पाए। शोरगुल, धूल, प्रदूषण से बेहाल। भागती जिंदगी में। दो पल सुकून के ढूँढ पाए। अपने को फिर से ढूंढने की जद्दोजहद कर पाए। एक पुरानी कहावत है। कि पैसे से सब कुछ नहीं खरीदा जा सकता। लेकिन इस महामारी में यह भी अहसास दिलाया। कि बिना पैसे के बहुत कुछ अधूरा रह जाता है। पैसे पर आधारित रिश्तों को टूटते बिखरते देखा। लेकिन यह भी देखा कि एक समय और एक स्थान पर आकर आधुनिक सुविधा, लग्जरी लाइफ, विदेश यात्रा से जाता अपनों का साथ महत्वपूर्ण हो जाता है। मानव एक सामाजिक प्राणी है। यह पढ़ाया तो हमेशा से जाता है। लेकिन युवा इस। वास्तविकता से दूर भागना चाहते हैं। इस महामारी ने। समाज के महत्व को सीखा दिया।
आज पर्यावरण पर्यटन मानव अधिकार शांति, आबादी शिक्षा और वैश्विक सरोकारों से मानव समुदाय सीधे सीधे संबंधित हो गया है। इस अफरातफरी भरे दृष्टिकोण के फलस्वरूप सामाजिक आर्थिक या राजनीतिक महत्व की राष्ट्रीय अथवा अंतरराष्ट्रीय परिघटनाएं सामाजिक परिदृश्यों को भी प्रभावित करती है।शिक्षा केवल जीवन यापन का साधन नहीं। बल्कि सामाजिक परिवेश की एक पाठशाला भी है।
महामारी : जनसंख्या ,प्रदूषण और युवा
सामान्य परिदृश्य में भी वायु प्रदूषण के कारण पूरे विश्व में 2017 में ही 12.4 लाख लोगों की मृत्यु हुई है।और भारत में होने वाली मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण है। युवा, वायु प्रदूषण और जनसंख्या आपस में संबंधित है। यह महामारी और उसके प्रभाव से भी संबंधित हैं। आंकड़े पुष्टि करते हैं की अधिक जनसंख्या वाले शहरों में प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा होता है और सीधे सीधे महामारी को आमंत्रण देता है। और उसका नियंत्रण भी अत्यंत कठिन है। कोविड 19 के बाद एक विचार उभरा है। युवा कुछ ऐसा प्रभावी और कुशल उपाय तलाश कर रहे हैं जिससे पर्यावरण संतुलन, जनसंख्या नियंत्रण, वैश्विक तापमान का नियंत्रण और ऊर्जा की बचत हो सके। युवाओं ने वर्क फ्रॉम होम पसंद किया है। जहाँ युवाओं को समय के लचीलेपन के साथ अपने साथी और परिवार के साथ वक्त बिताने का समय मिलता है। और कार्य और जीवन में संतुलन रहता है। दूसरी ओर सड़क पर वाहनों की कमी से प्रदूषण नियंत्रण में रहता है। यह भी देखा गया है कि वर्क फ्रॉम होम के लचीलेपन के कारण उत्पादकता में वृद्धि हुई है।
महामारी के रौद्र रूप देखने के बाद युवाओं में छोटे और मझोले शहरों की ओर आकर्षण बढ़ा है। मेट्रो और महानगरों को छोड़ युवा छोटे शहरों की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। इसके अलावा वो जलवायु सुधार की ओर भी संकल्पित है। युवा अपशिष्ट प्रबंधन, ग्रीन टेक्नोलॉजी, और आर्गेनिक उत्पादन पर अपने को केंद्रित कर रहे हैं। वह फिर से देशी परम्परा और योग, आयुर्वेद जैसी विषयों को विस्तार से जानने के लिये उत्सुक हैं गांवों में सूक्ष्म और मध्यम उद्योगों का विकास करके युवा मज़दूरों के शहरों के प्रवास की समस्या हल हो और जनसंख्या घनत्व को संतुलित किया जा सके।
महामारी की राजनीति ,छद्म राष्ट्रवाद और युवा
राजनीति जरूरत के अनुसार अपने स्वरूप बदलती रही है। इस महामारी वाले संकट के समय भी युवाओं को जातिगत अगड़े पिछड़े की राजनीति और आरक्षण जैसे मुद्दों में उलझा कर मुख्य समस्या से विलग किया जा रहा है। राजनीति में युवाओं को केवल भीड़ वृद्धि करने के लिए मोटे तौर पर इस्तेमाल हुआ है। वैश्विक स्तर की महामारी को भी राजनीतिक चश्मे से देखना, और दवाइयों, उपचार की सुविधाओं और वैक्सीन की उपयोगिता और उपलब्धता पर राजनीतिक समीकरण बैठाना देश के राजनेताओं का प्रिय शगल है, और युवा इनके शिकार हैं।
कोविड के दौरान युवाओं में विशेष मानसिकता भी दृष्टिगोचर हुई। युवाओं में अचानक से राष्ट्र के प्रति मातृभूमि के प्रति लगाव और प्रेम भाव जागृत होने लगा। वह युवा जो विदेशों में वर्षों से रह रहे थे या विदेश जाने का ख्वाब देख रहे थे, प्रवासी व्यवसायी, छात्र, उद्यमी, श्रमिक संकट की घड़ी में सभी में देशप्रेम ओतप्रोत होने लगा।और स्वदेश आने को लालायित होने लगे lदेश से यह प्रेम और लगाव उनका असुरक्षा बोध है। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति उदार मानव मूल्यों से नहीं वरन संकीर्ण स्वार्थों और छद्म राष्ट्रप्रेम का परिणाम है। अब युवाओं को यह समझने और आत्मसात करने की जरूरत है कि वह किसी के वैचारिक गुलाम न होकर स्वयं के चिंतन से देश समाज और स्वयं की दिशा तय करे
भारत के युवाओं को राजनीतिक दृष्टि से देखने पर स्पष्ट दो भाग दिखाई देते हैं। एक वह युवाओं की टोली है जो अशिष्ट, विचारहीन और बिना किसी स्वविवेक के चिंतन के राजनीतिक भीड़ का हिस्सा बने हुए हैं। जिन्हें समाज, राष्ट्र, के गंभीर मुद्दों से सरोकार नहीं है। केवल व्यक्तिगत हित की चिंता होती है। दूसरी ओर वे युवा हैं जो राजनीतिक मुद्दों पर देश के मुद्दों पर मृतप्राय हद तक उदासीन हैं। उन्हें अपने वर्चुअल दुनिया और अपने मौज मस्ती नौकरी से ही लेना देना होता है। महानगर से जोड़कर भारत के जोड़कर विश्व का इतिहास सिलसिलेवार देखें तो पता चलता है ज्ञान विज्ञान के विकास में पिछले 300, 400 सालों में भारतीय युवाओं का 1% से भी कम योगदान रहा है। और इसका बड़ा कारण यह भी देखा गया है कि राजनीति में इस महामारी भूख डर और गरीबों की दुर्दशा का राजनैतिक फायदा उठाने की हरसंभव कोशिश की गई है।
उम्मीद का भविष्य
हौसलों की उड़ान बाकी है।
मुझे अपने देश की युवा शक्ति के हौसलों पर पूरा भरोसा है। प्रत्येक आपदा एक रात की तरह है रात बीतने के बाद यही युवा भरपूर ऊर्जा, सकारात्मकता, रचनात्मकता। के साथ अपना 100% देने के लिए फिर से तैयार है। भारत के आर्थिक सामाजिक विकास पर पूरी दुनिया की नजर है। वह महामारी के बाद फिर से वैश्विक बाजार के रूप में उभरा है। और 2025 तक दुनिया की सबसे बड़ी वर्किंग फोर्स के तौर पर जाना जाएगा। पूरी दुनिया में हर काम करने वाला हर पांचवां व्यक्ति भारत से होगा। भारत ने 40 करोड़ युवाओं के कौशल विकास के लिए कार्यक्रम शुरू किए हैं। देश के 54% कामगारों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। 342 विदेशी उपग्रह को अंतरिक्ष में भेज कर इसरो देश में सैटेलाइट लॉन्च हब बनने की दिशा में है। देश का युवा 2050 तक 66% सौर ऊर्जा और 50% ग्रीन फ्यूल का इस्तेमाल करने की ओर अग्रसर हैं। COVID-19 के बाद न्यू नॉर्मल से हर पहलू का समाधान ढूंढने और बेहतर विकल्प के लिए युवा तत्पर हैं। भारत के पास इस समय 50,000 सरकार से मान्यता प्राप्त स्टार्टअप हैं, जिसमें 45 प्रतिशत महिला उद्यमियों द्वारा शुरू किए गए हैं। युवाओं के पास इस समय जॉब के अवसर कई गुना बढ़ गए हैं क्योंकि दुनिया भर में स्टूडेंट वीजा और बिजनेस वीजा ही मिल रहा है ।इसके कारण अमेरिका,ब्रिटेन जैसे देशों में काम करने वाले लोगों की कमी हो गई है जिसका फायदा भारतीय युवा आपदा में अवसर की तरह उठा रहे हैं
उच्च शिक्षित, दीक्षित और प्रशिक्षित युवा समाज की दशा और दिशा का निर्धारण करता है। तकनीक का उपयोग समाज के उत्थान के लिए, शिक्षा के लिए और अवसरों के निर्माण के लिए होना चाहिए। जब हम एक बहुत बुरे दौर से गुजर कर आए हैं तब हमारे पास स्तिथि स्पष्ट है की हमें अब सही और गलत, न्याय और अन्याय ,धर्म या राजनीति, मानवता करुणा या स्वार्थ, इन सबके बीच में सही चुनाव करने की समझ आ चुकी है। धर्म का मकसद मानव मात्र को उन्मुक्त जीवन जीने की आजादी देना रहा है। धर्म समाज को दया नैतिकता की राह पर चलकर राष्ट्र भक्ति का साधन बनता है, राजनीतिक दुष्चक्र की पहचान युवा शक्ति को होना चाहिए। किसी भी देश की युवाशक्ति वर्तमान को जीवंत करते हुए भविष्य के नवनिर्माण की प्रबल संभावना प्रशस्त करती हैं। ज्ञान विज्ञान और प्रौद्योगिकी का सही जगह पर सही उपयोग हर समस्या का समाधान कर सकता है। कितना ही पैसा सुरक्षा तकनीक में विश्व का खर्च होता है, शिक्षा और स्वास्थ्य से ज्यादा बजट रक्षा उपकरणों को खरीदने में खर्च होता है।्यक्तिगत चिंताओं और स्वार्थ से उठकर पूरी मानवता के लिए समग्र रूप से सोचने की कुशलता नहीं आयी तो वह युवा उसकी शिक्षा और परवरिश पर प्रश्न चिन्ह है।
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