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क्रियात्मक अनुसंधान का एक वर्ष : और हम जीत गए

  • Writer: Medha Bajpai
    Medha Bajpai
  • May 2, 2023
  • 5 min read

यह एक भावुक सी नवाचार की कहानी है जिसमें लगभग सारे इमोशंस है

ये कहानी एक शिक्षक और उसके विद्यार्थियों के साथ रिश्तों की है, उस भरोसे की भी है जो टूटने की सीमा तक जाकर फिर बना रहा, उन नम आंखों की है जिससे बच्चों को आगे बढ़ता देखने का मौका मिला। उन कहे अनकहे जज्बातों की है जो कभी समझ कर अन देखा करना पड़ा,तो कभी जताना पड़ा ।



नवाचार करना creative होना केवल painting और craft करना नहीं है ,अपितु प्रत्येक क्षेत्र में लीक से अलग होना और सोचना आपको रचनात्मक बनाता है आप कितने अलग अलग विचारों को आत्मसात करके मंथन करते हैं यही नवाचार है

इस पूरे वर्ष की कहानी में बच्चों ने अनेकों बार आँसू बहाए हैं मैं भी उनके साथ भावुक हुई हूँ। गुस्सा किया है बच्चों का गुस्सा देखा है, साथ मिलकर खुश हुए हैं और अपनी सफलता पर जश्न मनाया है।

जैसे अभी कल की ही बात है यह कहानी 10 महीने पहले 2022 के शिक्षा सत्र से प्रारम्भ हुई।

लेकिन इसकी पृष्ठभूमि में कोरोना काल की है शिक्षानीति, एनसीएफ 2005 के साथ काम करके उनके बिंदुओं पर शिक्षण प्रशिक्षण करने वाली , मनोविज्ञान के मेरे कौशल ,मेरी शिक्षण कला, मेरी टीचिंग स्ट्रेटेजी जो मेरे पहचान है सब पर प्रश्न चिन्ह सा लग गया था। ये विकट परिस्थिति थी जिसको मैं समझ पा रही थी की ये बहुत बड़ी चुनौती है, बच्चों का पूरा भविष्य था और मैं उस भविष्य और बच्चों के बीच में एक सूत्रधार के रूप में लेकिन विवश खड़ी थी.



कोविड 19 के 2 साल के मुश्किल भरे हालात के बाद सारे बच्चे क्लास में उपस्थित थे मैं उत्साह से भरी हुई की अब हम ऑनलाइन के झंझटों से दूर होकर आमने सामने शिक्षण और अध्यापन उसी जीवंत माहौल में कर पाएंगे । लेकिन इस उत्साह में बहुत जल्द ही पानी फिर गया जब भौतिक विज्ञान जैसा मुश्किल विषय में छात्र भयंकर अरुचि के शिकार हो गए। वो विषय के अध्ययन को तैयार ही नहीं थे वो तो यह मान रहे थे कि वो अभी भी कक्षा 9th के विद्यार्थी हैं (COVID-19) के पहले वाले समय में) और मैं उनकी 9th क्लास की क्लास टीचर जिसके साथ विज्ञान को खेल- खेल में हंसते गाते सीखते थे ।लेकिन अब वो कक्षा 12 वीं में भौतिक विज्ञान के विद्यार्थी थे और पिछले 2 साल में ऑनलाइन की दुरुह परिस्थितियों में उनका न्यूनतम अधिगम स्तर (minimum learning level) बहुत कम हो गया था , वो learning losess के शिकार थे



2 साल में ये जेनरेशन कॉपी पेस्ट और स्मार्टफोन की इतनी गुलाम हो गई थी कि वे अपने मस्तिष्क, अपने तर्कों और अपने हाथों का कोई उपयोग करने को तैयार नहीं थी । ये बच्चे मोबाइल और सोशल मीडिया की आभासी दुनिया से बाहर नहीं निकल पाए ,और एकाकी हो गये हैं। उन्होंने अपनी आभासी दुनिया बना ली थी और अपनी विचारों की उलझन में लगे रहे ।

ये विकट परिस्थिति थी जिसको मैं समझ पा रही थी की ये बहुत बड़ी चुनौती है, बच्चों का पूरा भविष्य था और मैं उस भविष्य और बच्चों के बीच में एक सूत्रधार के रूप में लेकिन विवश खड़ी थी।ये छात्र, छात्राएँ

1 लिखना भूल गये हैं उनकी उंगलियां लिखने के लिए अभ्यस्त नहीं रहीं।

2 याददाश्त कमजोर हो गई है ,और अपनी भावनाएं पहचान नहीं पा रहे थे।

3 ज्यादा आक्रामक हो जा रहे हैं।

4 कोई motivation ही नहीं था उनके पास पढ़ने का उन्हें लगता है की रोज और लगातार पढ़ने के लिए स्कूल जाना और क्लास में बैठना समय की बर्बादी है.



मुझे उनको पढ़ाने से ज्यादा पढ़ने के लिए प्रेरित करना था,उन्हें सामाजिक और मुखर बनाना था, उनको लगता था की मोबाइल और सोशल मीडिया के रूप मे उनके पास ज्ञान और साथ (दोस्त और समाज) दोनों पास हैं l इस भ्रम से बाहर निकालकर जीवन की वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए तैयार करना था और सही है नाव भी लहरों के हलचल से अछूती कैसे रहती है.


मैं बच्चों के साथ एक बार फिर 12th की स्टूडेंट बन गई थी कितनी ही समीक्षाएं कितने ही संवाद सत्र फिर कितने ही एक्शन रिसर्च के बाद पहले समस्या पहचान फिर उसको सुधारने के लिए अलग अलग रणनीति पर कार्य किया ।

बार-बार की असफलताएँ निराशा दे सकती हैं , पर वे व्यर्थ नहीं होतीं । पूर्व की असफलताओं में वे जुड़ती जाती हैं और एक-न-एक दिन असफलताओं की केंद्रित ऊर्जा , चाहत के साथ जुड़ कर उसे सफल कर देती हैं ।

पहले 2 माह केवल यह समझाने में लगे की शुरूआत कहां से की जाए।

8 महीने को 4 समय चक्र में और 3 ग्रुप मे बांटा


Slot 1 - पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित जाँच कर 3 ग्रुप बनाये

Group A - इस ग्रुप में वो छात्र छात्राएँ थे जिनमें motivation था पर विषय ज्ञान औसत था जिसे उच्च स्तर पर ले जाना था


Group B - इस ग्रुप में negative motivation था विषय ज्ञान न के बराबर था, दिशा हीन थे

Grouo C - ये वो ग्रुप था जिसमें न तो motivation था ना विषय ज्ञान था और ना ही वो किसी बात को सुनना सीखना चाहते थे। सबसे समस्या वाला यही ग्रुप था और चुनौती भी इसमें थी।


Slot 2 – तीनों ग्रुप पर अलग अलग अप्रोच से काम किया सबसे ज्यादा उपयोग CBT theory का किया।

एक समय लगा की मैं हार रही हूँ किसी भी अवधारणा को छात्र पकड़ ही नहीं पा रहे थे छात्र मेरा सम्मान करते हैं, प्रेम करते हैं लेकिन मेरे बताए रास्ते से भटक जाते हैं।

और उसी समय फिर अचानक एक छात्र आया और उसने कहा की मैडम सही करंट फ्लो के लिए हमें रेजिस्टेंस एडजस्ट करना होगा रजिस्टेंस बदल बदलकर चेक करना पड़ेगा। इस सूत्र वाक्य ने जैसे मेरी सोच ही बदल दी।सही भी है धारा का प्रवाह प्रतिरोध पर निर्भर करता है ये ओम का नियम सीखने पर भी तो लागू होगा


मैंने परिस्थितियों को अपनाने और अज्ञात का सामना करने का महत्व सीखा।

अपने शिक्षण के लिए कड़ी मेहनत करते हुए, मुझे ये एहसास भी हुआ की प्रत्येक छात्र अद्वितीय है और हमें उनसे बिना शर्त प्रेम करते हुए ये बताना होगा की मैं उनके साथ हूं। रिश्ते महत्वपूर्ण हैं और उन्हें पोषित और पोषित करना होगा। यह भी ध्यान रखा कि एक रिश्ता दो तरफा होता है, इसलिए किसी रिश्ते को वैसे ही देने के लिए तैयार रहें जैसे आप दूसरे व्यक्ति से आपको पाने की उम्मीद करते हैं

और हमे लगातार अपने शिक्षण तरीकों में बदलाव करते रहना होगा।


Slot 3 – प्रत्येक ग्रुप का अलग अलग रेजिस्टेंस था और धारा प्रवाह के लिए उनका अलग अलग समायोजन किया

साम,दाम, दंड, भेद, हर तरीका अपनाया और पहली बार लगा की मेरे साथ बच्चे आ रहे हैं




आखिर के 2 months जब परीक्षा के लिए भी तैयारी करनी थी और जीवन युद्ध के लिए भी तैयार होना था। मुझे लगने लगा की बच्चे गंभीर हो गये हैं, और सम्वेदन शील भी हो गये हैं। और जीतने की हर सम्भव प्रयास में हैं .

सभी बच्चों की अलग अलग कहानियां हैं, उनके अलग अलग योगदान है अब स्कूल की परीक्षा का परिणाम कुछ भी हो लेकिन बच्चों सहित हम जीत गये .


MEDHA BAJPAI





















 
 
 

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