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कोणार्क मंदिर की धूप घड़ी - विज्ञान की बात : इतिहास के साथ

  • Writer: Medha Bajpai
    Medha Bajpai
  • Mar 6, 2023
  • 2 min read

कोणार्क मंदिर की धूप घड़ी - जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य की भाषा से श्रेष्ठतर है। हम आश्चर्य से भर गए जब स्थानीय गाइड ने धूप घड़ी से समय की ठीक ठीक गणना कर के कहा की अब आप लोग अपनी घड़ी से मिलान कर ले। विज्ञान देखने अनुभव करने और समझने के लिए बंद प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं होती कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 1250 ईस्वी में गंगवंश के राजा नरसिंह देव प्रथम ने कराया था. इस मंदिर की विशेषता है कि यहां बिना किसी घड़ी के भी दिन के समय को गणना किया जा सकता है.


कलिंग वास्तूशैली में बना कोणार्क सूर्य मंदिर को रथ आकार में बनाया गया है जिसमें 12 जोड़ी पहिए हैं, जो साल के 12 महीनों का प्रतीक हैं। और इस रथ को सात घोड़े खींच रहे हैं। ये सात घोड़े सात दिनों को दर्शाते हैं। वहीं, इन पहियों में से 4 पहिए इस तरह बनें हैं कि ये दिन में समय बताते हैं। पहिए में कुल 8 तीलियां हैं. हर एक तीली एक पहर (3 घंटे) का प्रतिनिधित्व करती है ,आठ तीलियां 24 घंटे को दर्शाती हैं । तीलियों पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो उनकी छाया को देखकर समय बताया जाता है. इसलिए इन पहियों को धूपघड़ी भी कहा जाता है।इस धूप घड़ी से आज भी समय देखा जाना रोमांचक है। कोणार्क मंदिर को लोग इसके गहरे रंग के कारण 'काला पगोडा' भी कहते हैं.


पहिए के किनारे पर कई मनके हैं। छोटी और बड़ी तीली के बीच 30 मनके होते हैं । तो, 90 मिनट को आगे 30 मनकों से विभाजित किया जाता है। इसका मतलब है कि प्रत्येक मनका 3 मिनट का मान रखता है। मनके काफी बड़े हैं, इसलिए आप यह भी बता सकते हैं कि छाया मनका के केंद्र में या मनके के किसी एक छोर पर पड़ती है। इस तरह हम समय की सटीक गणना मिनट तक कर सकते हैं।


 
 
 

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