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कार्बन फुटप्रिंट : बच्चों को बनाए पर्यावरण प्रहरी

  • Writer: Medha Bajpai
    Medha Bajpai
  • May 30, 2021
  • 5 min read

परवरिश का एक रंग यह भी


चिपको आन्दोलन के प्रणेता और वृक्ष मित्र, पर्यावरण वादी सुन्दरलाल बहुगुणा जी के देहांत के बाद एक खबर पर नज़र गयी। उन्होंने चावल खाना छोड़ दिया था। क्योंकि उनका मानना था की पर्यावरण पर गंभीर चिंता करने वाले व्यक्ति को ऐसा करना ही चाहिएl 1 किलो चावल को उगाने में 3000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।और वह चावल खाना छोड़ कर कम से कम इस पानी को बचा सकते हैंl





इसी खबर को पढ़ते हुए एक और घटना याद आ गई। कुछ वर्ष पहले सिक्किम जाना हुआ था। गैंगटोक से लगभग 150 किलोमीटर ऊपर और 13000 फीट पर किसी एक छोटे मनोरम स्थान पर छोटी बेटी जो उस समय 5 साल की थी, ने समोसा खाने की जिद की। जो वहाँ के स्थानीय भोजन में शामिल नहीं था। मेरे बहुत समझाने के बाद भी समोसा मंगाया गया जो अनुमान के अनुसार स्थानीय खाने की तुलना में बहुत महंगा था। मैने उत्सुकतापूर्वक उसका कारण जानना चाहा तो पता चला यह सारा कच्चा सामान जो स्थानीय तौर पर उपलब्ध नहीं होता वह बहुत दूर से लाया जाता है, और उसकी परिवहन की व्यवस्था के कारण न केवल कीमत बढ़ती है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी वह महंगे हो जाते हैं।


बाद के कुछ सालों में जब बेटी ने पर्यावरण चेतना पर अपने कुछ प्रोजेक्ट बनाएँ तो उसने ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा जिसे कार्बन उत्सर्जन या कार्बन फुट प्रिंट भी कहते है के चौंकाने वाले तथ्यों के साथ आंकड़ों को प्रस्तुत किया और सोचने पर मजबूर किया की पैसा हमारा है उसे हम अपनी मर्जी से खर्च कर सकते हैं, लेकिन पृथ्वी अकेले की नहीं है और उसके बिगाड़ का अधिकार किसी को नहीं है इसी सोच ने बेटी को पर्यावरण प्रहरी बनने की दिशा में अग्रसर भी किया l


कुछमहत्त्वपूर्ण तथ्य

भारत में कार्बन फुटप्रिंट का प्रमुख कारण है भोजन और बिजली।

  • 7% कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन करके भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है।


  • 1.5 lit पानी की बोतल के निर्माण में 44 ग्राम से 633 ग्राम कार्बन फुटप्रिंट और तीन लीटर पानी खर्च होता है ,और यदि परिवहन को शामिल किया जाये तो यह प्रतिवर्ष विश्व में 0.5% कार्बन डाई ऑक्साइड की बढ़ोतरी करता है।


  • भारत में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष औसतन 0.5% टन कार्बन फुटप्रिंट है।


  • सामान्य अनुमान है कि एक व्यक्ति के लिए एक डिब्बा बंद खाना उसका 13% कार्बन डाइऑक्साइड फुटप्रिंट बढ़ा देता है। यदि एक सस्ता कपड़ा भी बिना उपयोग के रह जाए। अथवा कोई भोजन बिना उपयोग हुए रह जाए या कोई डिब्बा बंद सामान रखे रखे ही खराब हो जाए तो वह पर्यावरण के लिए 20%-30%कार्बन फुट प्रिंट बढ़ा कर अत्यधिक महंगे साबित होते हैंl


  • फैशन की दुनिया में एक लेदर जैकेट बनाने में 176 किलोग्राम कार्बन फुट प्रिंट और एक जींस बनाने में 33 किलोग्राम कार्बन फुटप्रिंट बनता है।


  • गूगल सर्च पर एक क्लिक से 1 से 10 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन होता है और एक सेकेंड में पूरे विश्व में 500 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।


  • एक फ़ोन को बनाने में लगभग 16 से 22 किलोग्राम कार्बन फुटप्रिंट उत्पन्न होता है। जबकि केवल एक जीबी डाटा के उपयोग से 3 किलोग्राम कार्बन का उत्सर्जन होता है।


  • यदि हम शाकाहार से मांसाहार की ओर बढ़ते हैं तो प्रति व्यक्ति 1 दिन में 1.5 किलोग्राम कार्बन फुटप्रिंट की बढ़ोतरी करता है। एक सामान्य भारतीय शाकाहारी भोजन में करीब 0.86 किलोग्राम कार्बन उत्सर्जित होती है l






कार्बन फुट प्रिंट क्या है:-


किसी भी कार्य व्यवहार से जितनी कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होती है और वातावरण में जाती है वह कार्बन फुटप्रिंट कहलाता है। यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारी आदतें, हमारी जीवनशैली हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले उत्पाद और हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले उपकरण द्वारा प्रति दिन, प्रति वर्ष वातावरण में उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैस की मात्रा है

कार्बन फुटप्रिंट, कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों की वह मात्रा है जिसके द्वारा वैज्ञानिक यह माप सकते हैं कि एक व्यक्ति की जीवन शैली, आदतें, कपड़े, भोजन के उपयोग और तरीके का पर्यावरण पर क्या असर पड़ता है? क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग पर व्यक्तिगत व्यवहार बहुत प्रभाव डालता है और यही स्थिती रही तो सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान 4डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा।


क्योटो प्रोटोकोल के तहत 6 तरह की ग्रीनहाउस गैसें हैं और सभी गैसों का उत्सर्जन कार्बन फुटप्रिंट में गिना जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड,हाइड्रो फ्लोरो कार्बन,पफ्लोर्रोकार्बन, सल्फर हेक्साफ्लोराइड। शोध बताते हैं कि कार्बन फुटप्रिंट न केवल जलवायु पर असर डालता है, बल्कि यह मनुष्य की सोचने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। पूरा विश्व आज कल ग्लोबल वार्मिंग से चिंतित है और इसको कम करने की कोशिश में लगा हुआ है। इस कोरोना की महामारी के समय जब संपूर्ण विश्व ने पर्यावरण और ऑक्सीजन के महत्व को समझ लिया है, तब यह और अधिक उपयोगी हो जाता है कि बच्चे भी जागरूक हो l पेरिस में हुए जलवायु परिवर्तन समझौते में भारत ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में। 33-35 % कमी करने का वादा किया है।





हम बच्चों की छोटी छोटी आदतों को दिनचर्या में शामिल कर सकते हैं। ये आदतें जीवन शैली में शामिल हो जाए तो बच्चे जब कल जिम्मेदार नागरिक बनेंगे तो स्वयं पर गर्व करेंगे । घर में ,स्कूल में छोटे छोटे प्रयास से उनको कार्बन फुटप्रिंट के प्रति सजग बना सकते हैं।



यह 2 स्तर पर करना होगा

1 जागरूक करना :

2 प्रेरित करना :


कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के भोजन की टेबल, दैनिक दिनचर्या में थोड़ा सा बदलाव करना होगा l




1 डिब्बा बंद खाना मतलब कार्बन फुटप्रिंट को बढ़ावा देना। एक चिप्स का पैकेट खोलना या एक पिज्जा का ऑर्डर करना कार्बन फुटप्रिंट में बढ़ोतरी करता है। छोटे पैकेजिंग की जगह जरूरत के अनुसार बड़े पैकेजिंग में सामान मंगाना ज्यादा ठीक है महँगा खाना हीस्वादिष्ट और पौष्टिक नहीं होता स्थानीय और विकल्प भी तलाश करके बच्चों को सजग करना हैl


2 बाजार से पानी की बोतल खरीदने के बजाय हम घर से पानी की बोतल ले जाने की आदत डालें। और पानी की बचत भी करें l


3 खाने की प्लेट में कुछ भी छोड़ना मतलब कार्बन फुटप्रिंट को बढ़ाना। प्रत्येक लंच बॉक्स या खाने की प्लेट के कार्बनउत्सर्जन की गणना करना सिखाये l मतलब ये है की अगर बच्चे ने ऑनलाइन बिरयानी मंगाई है तो चावल के खेत में उगाने से लेकर उसे पकाने और घर तक लाने में कितना कार्बन उत्सर्जन हुआ होगा उसकाअंदाजा लगाना की जितनी दूर से खाने का सामान आएगा वो कार्बन फुटप्रिंट को बढ़ायेगा यह बच्चों के जेहन में रहना चाहिए l


4 बार बार खाने को गर्म करना और बार बार माइक्रोवेव का उपयोग करना कार्बन फुटप्रिंट को बढ़ाता है। इसके बारे में बच्चों को सजग होने की आवश्यकता है।


5 रेफ्रिजरेटर का तापमान मीडियम पर रखें और खाना निकाल कर तुरंत गर्म ना करें l फ्रोजन खाद्य पदार्थों में कमी करना होगा l खाने को प्रिजर्व करने के लिए प्राकृतिक तरीके काउपयोग करना होगा l


6 शाकाहार को बढ़ावा देना होगा। जिससे कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सके।


7 छोटे बच्चों के दोस्तों के साथ ऐसी पार्टी की जा सकती है जिससे कम से कम कार्बन उत्सर्जन हो l खाने को जितना कम process किया जायेगा और उसके मूलरूप में खाया जाये उतना पर्यावरण शुद्ध होगा l


8 डिस्पोजल कप, स्ट्रॉ ,प्लेट का उपयोग कम से कम हो l यह बच्चों की आदत में शामिल होना चाहिए l


9 स्कूलों में ऐसे प्रतिस्पर्धाएं आयोजित की जा सकती है जिसमे कार्बन उत्सर्जन के लिये सतर्क बच्चों को पुरस्कृत किया जाए और यह प्रतियोगिता भोजन से संबंधित होl


महत्व पूर्ण यह नहीं है की आप कितने ऐशो आराम से रहते हैं l महत्वपूर्ण यह है कि आप विरासत में कैसी धरती छोड़कर जाते हैंl और इसकी एक बड़ी जिम्मेदारी हमारी परवरिश पर हमारे स्कूलों पर भी है। तो परवरिश का एक तरीका यह भी होना चाहिए।

 
 
 

1 Comment


Alpana Joshi
Alpana Joshi
Jun 06, 2021

very good and very valuable information

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