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prakriti ki pathshala

  • Writer: Medha Bajpai
    Medha Bajpai
  • Mar 6, 2023
  • 5 min read

हम तो केवट है और केवट ने तो भगवान राम को भी नहीं छोड़ा था, उनसे भी अपने लिए उतराई मांली थी।“ यह कहते हुए नाव यात्रा समाप्ति पर उसने अचानक अपना पारिश्रमिक बढ़ा दिया पर हम लोगों का दिल जीत लिया। वह निपट देहाती अनपढ़ था। मध्य वय का युवक पहले उसके व्यक्तित्व में ऐसा कुछ खास नहीं लगा की याद रखा जाए। लेकिन जैसे ही धारा के प्रवाह के साथ नाव ने गति पकड़ी और वैसे ही उसकी बातें, उसके व्यवहार की छाप हमारे हृदय को प्रभावित करती चली गयी। केवट ना हुआ चलता फिरता दार्शनिक था, जिसने अनुभव की किताब को बिना स्कूल गए पढा था । वह असाक्षर 13 भाषाओं को बोलने में दक्ष था। अपने आगंतुकों को देख कर भाषा और बातचीत के विषयों का चयन करता था गाइड, इतिहासकार ,दार्शनिक, पर्यावरण चिंतक , दूरदर्शी, मर्मज्ञ मनोवैज्ञानिक ऐसा कि पर्यटकों की चाल ढाल से उनके प्रयोजन समझ लें की पर्यटकों पर कौन सा एप्रोच काम करने वाला है, विशुद्ध प्रोफेशनल । 1 बिना औपचारिक शिक्षा के भी व्यक्ति ज्ञानी और शिक्षित होता है, व्यक्ति को केवल उसके बाहरी आवरण से judge नहीं करना चाहिए पाठकों को बता दूँ की मैं यहाँ बात कर रही हूं त्रिवेणी संगम प्रयाग राज उत्तर प्रदेश की । मुझे नदियों का बहाव हमेशा रोमांचित करता रहा है,नदियों के किनारे यायावरी करना मेरी आत्मिक इच्छा में से एक है। लोगों को निहारना उनके हावभाव पहचानना वहाँ की संस्कृति को समझना वहाँ के भोजन खानपान को जानना शौक है और ये सब करके मुझे शांति मिलती है । नदी प्रवाह को देखना, उसे अनुभव करना और उस प्रवाह के साथ अपने विचारों को प्रवाहित होने देना मुझे ध्यान की अवस्था में ले जाता है। इसके पहले भी प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में मेरा आना होता रहा है और हर बार एक नई अनुभूति और नए रोमांच के साथ मैं अपनी यात्रा को पूरी करती हूँ।इस इस बार की यात्रा इस अनाम केवट के साथ थी जिसने मुझे जीवन के बहुत सारे पाठ को समझा दिया।

त्रिवेणी संगम की यात्रा के दौरान जब घाट से नाव में विराजित हुए और केवट से उसका नाम पूछा तो बहुत ही दार्शनिक अंदाज में उसने कहा कि नाम में क्या रखा है मैडम जी जब “मरा- मरा” कहकर ही रत्नाकर डाकू ऋषि वाल्मीकि बन गए ,आप तो बस काम देखिए। वो अपना हुनर और अपनी प्रतिभा को किसी भी नाम के बंधनों से मुक्त रखना चाहता था। अनोखी थी उसकी दार्शनिक व्याख्या। मेरा मन सूर्योदय के साथ नदी में पड़ने वाली किरणों और उससे जगमगाते झिलमिलाते सौंदर्य को निहारने में खो गया। चौड़े पाट पर श्यामल यमुना नदी की धारा और उसमें बहुत सी नाविकों की भीड़ थी। अनेक प्रयोजनों से आए श्रद्धालु, पर्यटक अपने कार्य सिद्धि के आधार पर नाव और सहयात्रियों का चुनाव कर रहे थे। अधिकांश अपने पितरों का पिंड दान, और अस्थि विसर्जन करने आते हैं और वैराग्य भाव से भरे हुए होते हैं। स्थानीय अवधि और बघेली बोली का मिश्रण कानों को सुखद लग रहा था। नदियां केवल जल स्त्रोत नहीं हैं यह मानव अस्मिता से जुड़ी आध्यात्मिक संसार भी है, कम से कम भारत में तो ऐसा ही है। मैंने कुछ सहयात्रियों के साथ 3 घंटे के लिए इस अनाम केवट की नाव में यात्रा प्रारंभ की। “साहब जी कम से कम पहले प्रणाम तो कीजिए उसके बाद स्नान कीजिये।” जैसे ही एक सहयात्री ने अपने पैर पानी में डालने चाहे उसके अंदर की वह श्रद्धा और कर्तव्य बोध जाग गया पर्यावरण के लिए उसकी चिंता और सतर्कता कोरी भावुकता नहीं थी।अचानक जोर से उसने आओ- आओ कहा और ढेर सारे पक्षी आसपास मंडराने लगे। उसने थैली में से कुछ खाने के दाने निकाले और वही पानी में उनको भोजन दिया। केवट की आवाज और मंशा पक्षी पहचानते हैं कुछ मछलियों को भी दाने दिये। कहने लगा जैसे शून्य में से बातें कर रहा हो। गंगा हमारी माँ है और हम सब इनके बच्चे हैं। हम मनुष्यों को, पक्षी, जलचर ,नदी सब को सहेजना है, तभी हम एक दूसरे की सहायता करके जीवित रह पाएंगे। 2 पर्यावरणीय संरक्षण और पोषण के लिए बहुत शोर की आवश्कता नहीं है थोड़ी सी सजगता ही जरूरी है उसका संक्षेप में जो सार था वो मैं अपने शब्दों में कहती हूँ “पृथ्वी को पुन: स्थापित करने के लिए पृथ्वी पर निवेशकरना आवश्यक है।” अपनी यात्रा में थोड़ा आगे बढ़े तो यमुना की धारा के साथ गंगा की धारा भी दिखी त्रिवेणी संगम दिखने लगा था वहां स्थानीय व्यवस्था के तहत बहुत से रंग बिरंगे झंडे लगे थे। किसी किसी नाव में भी झंडे लगे थे। किसी उत्साही सहयात्री ने कहा अरे देखो नाव पर भगवा झंडा लगा है। तो उसने बहुत ही सहज तरीके से कहा मैं तो एक ही झंडा जानता हूँ, वो है तिरंगा झंडा।कितना सटीक और निष्पक्ष उत्तर था उसका। 3 देश प्रेम और राष्ट्रीयता हमारे व्यवहार में होना चाहिए नदी के प्रवाह के साथ इस मन के प्रवाह को उतनी चेतनता के साथ महसूस करना और कृतज्ञ होना अवर्णनीय है। प्रत्येक व्यक्ति मुस्कुराहट के साथ आत्मसंघर्ष से जूझ रहा है और आवश्यक नहीं कि वह सब के साथ इस संघर्ष को बांट पाए पर प्रकृति से तो बांटा जा सकता है 4 प्रकृति से कृतज्ञ हुआ जा सकता है। यह वो कृतज्ञता है जो अनंत सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है। केवट के साथ जब बातचीत आगे बढ़ी और उसने कहा देखिए मैडम जी गंगा और यमुना का पानी एक दूसरे से नहीं मिलता स्पष्ट बारीक अन्तर उन दोनों धाराओं में दिखता है l और नदियों के पानी के रंग के पौराणिक आख्यानों के बारे में बताने लगा यह भी की संगम का स्थान बदलता रहता है। वर्षा के दिनो मे गंगाजल सफेदी लिए हुए मटमैला और यमुना नदी का जल लालिमा लिए हुए होता है। शीतकाल मे गंगा जल अत्यन्त शीतल और यमुना नदी का जल कुछ गर्म रहता है। संगम पर पानी का यह अंतर साफ दिखता है।फिर अचानक रुक कर कहा मैडम जी साइंस क्या कहता है क्यों नहीं मिल पाती ये धाराएं एक दूसरे के साथ ?मैं आश्चर्य से उसे देखती रह गई। कितनी जिज्ञासा थी उसे विज्ञान को जानने में।यह भी पता था कि हर परंपरा के पीछे का एक कारण विज्ञान भी होता है। 5 विज्ञान केवल प्रयोग शाला तक सीमित नहीं है किसी ने कहा कि वह देखो अकबर का किला।उसने सुधार किया अशोक का किला यह किला रेलवे स्टेशन से लगभग 8 किलोमीटर संगम घाट पर स्थित है। इस प्राचीन किले का निर्माण सम्राट अशोक ने तथा जीर्णोध्दार अकबर ने कराया था।यह किला अब सेना के अधिकार में है जहा अनुमति पत्र लेकर जाया जाता है। 6 इतिहास को बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वीकारा जाना चाहिए प्रकृति के अलौकिक अद्वितीय सौंदर्य के साथ मानवता का सहज सौंदर्य का दर्शन भी होता चलता है विवेकशील गंगा और भावुक यमुना तथा स्थित प्रज्ञ सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर जब हम तीन बहने एक साथ पहुंचे और संगम के पवित्र जल का आचमन करते हुए प्रकृति की भव्यता के साथ मानव की सहजता के अनुभव किए। यह भी महसूस हुआ कि अत्यधिक सफलता कई मायनों में सहज मानवीय गुणों को छुपा देती है। संगम पर पूजा करते हुए अर्घ्य देते हुए जब पुरोहित ने गोत्र के साथ पुत्र का नाम पूछा और पुत्र ना होने पर जब मैंने एक यजमान के चेहरे पर मायूसी देखी तो नितांत वीतरागी से केवट के विचार निकले पर्वत की देवी पार्वती मैदान की देवी सीता और समुद्र की देवी लक्ष्मी इनमें से किसी के भाई नहीं है, अभी तक तो ऐसा लगा नहीं कि इनको किसी सहोदर की आवश्यकता है। इतने पुरातन ज्ञान को उसने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया की सभी सुनने वाले विभोर हो गए। 7 स्त्री पुरुष में भेदभाव प्रकृति नहीं करती ये तो मनुष्य द्वारा रचित जब दीप दान करते हुए कुछ मांगने का आदेश हुआ। तो आंखें बंद करके यही भाव आए, यही शब्द आए। तमसो मा ज्योतिर्गमय कलुष दूर कर प्रवाहित कर दो मां अपनी तरह निर्मलता दो और अन्तर्मन प्रकाशित कर दो मां।


 
 
 

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