MY LIFE - MY RULES
- Medha Bajpai
- Jul 13, 2020
- 2 min read
रोज की तरह आज फिर सुबह अपने समय पर घर के गार्डन में हूँ सुबह की पत्तों से छन कर आती हल्की – हल्की धूप के बीच श्रावण मास की हरियाली अपने चरम पर है। इसमें कुहू ,कुक्कु ,पीहू, गिल्लू, गौरी ,मिनी चीकू बाले ,पाखी के साथ मनचीता करते हुए निशब्द बातों का दौर चल रहा है।
जानकारी के लिए बता दूँ कि ये सब नाम या तो चिड़ियों के हैं जो सुबह-सुबह अपना लाड़ दिखाने आतीं हैं या फिर कुछ पौधों के नाम भी हैं | कुछ तितलियाँ और गिलहरी भी है ,ये सब कुछ अपनी कहते कुछ मेरी सुनते अपने सुख दुःख साझा करते जैसे मेरा हिस्सा ही हो गये हैं|

नहीं पता कि ये मुझसे सूकून पाते हैं या मुझे इनके पास शान्ति मिलती है एक एक पेड़,पौधे की स्वास्थ्य और सेहत कीजानकारी लेते, हर मौसम में उनको साथ खिलखिलाते ,शान्त और मुरझाते हुए देखना और सभी परिस्थितियों में अपनी जीवटता बनाये रखने की कला जीवन दर्शन सिखा जाती है और आध्यात्मिकता की ओर ले जाती है।
इन सबके बीच में एक अफसोस और निराशा वर्षो से थी।
एक क्यारी जिसमें फूलों के पौधे लगे हुए हैं वर्षो तक उनके साथ मेहनत करने और खाद पानी देने के बावजूद उनमें या तो फूल नहीं आते हैं या बहुत कम आते हैं।
और अब तो अनजाने में ही वह क्यारी मुझसे तिरस्कृत और उपेक्षित होने लगी है ।
आज भी सरसरी नजर उस क्यारी पर पड़ी वही बिना फूल के सारे पौधे।
लेकिन ये क्या!
मैंने देखा सारे पौधे अपनी हरितिमा लिए हुए गर्व से अपनी पूर्णता से इठला रहे हैं, मानों
जैसे कहना चाह रहे हैं तो क्या हुआ अगर हम पुष्पित नहीं है पल्लवित तो हैं|

और हमें पूर्ण होने के लिए किसी अनुमोदन या स्वीकृति के सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं है।
गिल्लू,गौरी,कुक्कु बाले आराम से वहां मंडरा रही थी बिना किसी पूर्वाग्रह और पक्षपात के उन पौधों के समर्थन में या सम्मान में।
यह प्रकृति कितना कुछ समझा देती है अगर हम समझना चाहें तो My life-My rules का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा। अपने हर काम पर लोगों की स्वीकार्यता क्यों चाहिए होती है।अपना जीने का तरीका ,अपने विचार ,पहनावा,सफलता,असफलता अपने अस्तित्व और सम्पूर्णता का आकलन दूसरों के मापदंड पर क्यों करने लगते हैं। और अनचाहे ही निर्देशित होने लगते हैं । और पूरा जीवन उन शर्तो पर निकाल देते हैं जिनकी आपको आवश्यकता ही नहीं है ।
अपनी पूर्णता स्वयं में है पूरी सहजता और सरलता से अपूर्णता को स्वीकार करने में, यह आज प्रकृति ने सिखा दिया।
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